Friday, April 10, 2015

तिब्बत और नेपाल के बीच 540 किलोमीटर लंबा रेल लिंक बनाने की योजना

चीन की योजना तिब्बत और नेपाल के बीच 540 किलोमीटर लंबा रेल लिंक बनाने की है, जो माउंट एवरेस्ट के नीचे एक सुरंग से होकर गुजरेगा। भारत के पड़ोस में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश वाले चीन के इस कदम से भारत को चिंता हो सकती है।
चीन के सरकारी अखबार चाइना डेली में कहा गया कि छिंगहाय-तिब्बत रेलवे के तिब्बत के रास्ते किए जाने वाले इस प्रस्तावित विस्तार से द्विपक्षीय व्यापार (खासतौर पर कृषि उत्पादों का) और टूरिजम को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि दोनों देशों को जोड़ने वाला कोई रेल मार्ग नहीं है। इस रेल लिंक के 2020 तक पूरा होने के आसार हैं। बहरहाल, इस प्रोजेक्ट की लागत पर कुछ नहीं कहा गया। आपको बता दें 1,956 किलोमीटर लंबी छिंगहाय-तिब्बत रेलवे फिलहाल चीन के शेष हिस्सों को तिब्बत की राजधानी ल्हासा और इससे परे के इलाकों से जोड़ती है। चाइनीज अकैडमी ऑफ इंजीनियरिंग के रेल एक्सपर्ट वांग मेंगशू ने कहा कि प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद इंजीनियरों को कई कठिनाइयों का सामना करना होगा। अखबार के मुताबिक, इस योजना के तहत माउंट एवरेस्ट के नीचे सुरंग बनाई जा सकती है। इस लाइन पर ऊंचाई में आने वाले बदलाव उल्लेखनीय हैं। इस रेल लाइन को संभवत: कोमोलांग्मा से होकर गुजरना पड़ेगा, इसलिए कर्मचारियों को कई बहुत लंबी सुरंगें भी खोदनी पड़ सकती हैं। कोमोलांग्मा पर्वत दरअसल माउंट एवरेस्ट का तिब्बती नाम है। हिमालय के दुर्गम पहाड़ों और यहां ऊंचाइयों में आने वाले अहम बदलावों के कारण इस लाइन पर ट्रेनों की अधिकतम गति संभवत: 120 किलोमीटर प्रति घंटा होगी। इस परियोजना पर काम नेपाल के अनुरोध पर किया जा रहा है और चीन ने तैयारी शुरू कर दी है।
तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र के अध्यक्ष लोसांग जामकन ने पिछले महीने तिब्बत की राजधानी ल्हासा की यात्रा पर आए नेपाली राष्ट्रपति रामबरन यादव को बताया था कि चीन की योजना तिब्बत रेलवे को केरमंग तक विस्तार देने की है। केरमंग शहर नेपाल की सीमा के पास स्थित है और यहां सीमा व्यापार पत्तन बनाया गया है।
चीन अपने तिब्बती रेल नेटवर्क का विस्तार भूटान और भारत तक करने की घोषणा पहले ही कर चुका है। अपनी हालिया नेपाल यात्रा के दौरान चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने अधिकारियों से कहा था कि वे काठमांडू और इससे आगे रेल नेटवर्क के विस्तार की व्यवहारिकता की स्टडी करें। चाइना इंस्टिट्यूट ऑफ कंटेंपररी इंटरनैशनल रिलेशन्स के डायरेक्टर हू शिशेंग ने बताया कि रेल लाइन का लक्ष्य स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं और लोगों की आजीविकाओं में सुधार लाना भर है। चीन नेपाल के साथ संबंध बढ़ा रहा है, ताकि नेपाल के रास्ते धर्मशाला जाकर दलाई लामा से मिलने वाले तिब्बतियों के प्रवाह को रोका जा सके। यह भारत के लिए चिंता का सबब हो सकता है। चीन ने हाल में नेपाल को दी जाने वाली 2.4 करोड डॉलर की सालाना मदद बढ़ाकर 12.8 करोड डॉलर कर दी थी।
चीन ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश पर भारत के साथ विवाद अकाट्य तथ्य है। हालांकि चीन ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों से सहमति जताई कि दोनों देशों को सीमा मुद्दे का परस्पर स्वीकार्य हल निकालने के लिए साथ मिलकर अनुकूल वातावरण तैयार करना चाहिए। अरुणाचल प्रदेश में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (AFSPA) की अवधि बढ़ाने के बारे में पूछे सवालों का जवाब में चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने यह बात कही। उसके मुताबिक, सीमा मुद्दे पर चीन का रुख हमेशा स्पष्ट रहा है। दोनों पक्षों को सीमावर्ती इलाकों में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए साझा प्रयास करना चाहिए और इस मुद्दे पर बातचीत के लिए अनुकूल परिस्थितियां तैयार करनी चाहिए।
अरुणाचल प्रदेश की 1,126 किलोमीटर लंबी सीमा चीन के साथ और 520 किलोमीटर लंबी सीमा म्यांमार के साथ मिलती है। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताकर उस पर दावा करता रहा है। अब चीन ने जिस तरह सीमा मुद्दे को 'बड़ा विवाद' और 'अकाट्य तथ्य' बताया है, उससे ऐसा मालूम होता है कि वह मोदी की अगले महीने पेइचिंग यात्रा से पहले अरुणाचल पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहता है। चीन के विदेश मंत्रालय से यह टिप्पणी ऐसे वक्त हुई है, जब शुक्रवार को दोनों देशों के टॉप डिफेंस अफसरों के बीच बातचीत होने जा रही है।

विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने यह भी कहा कि हमने प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी पर गौर किया है। सीमा मुद्दे पर चीन ने हमेशा सकारात्मक रवैया अपनाया है। पिछले साल सितंबर में भारत यात्रा के दौरान, चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि चीन मित्रवत बातचीत और सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखते हुए भारत के साथ मिलकर सीमा मुद्दे को सुलझाने के प्रति आश्वस्त है। विचारों के आदान-प्रदान हेतु 18 दौर की विशेष प्रतिनिधि वार्ता का उल्लेख करते हुए चीनी प्रवक्ता ने कहा कि सीमा मुद्दे को सुलझाना भारत और चीन की समान अकांक्षा की समान जिम्मेदारी है। हमने इस दिशा में काफी प्रयास किए हैं। दोनों पक्षों को स्वीकार्य विस्तृत और तर्कपूर्ण हल पर पहुंचने के लिए वार्ता प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की खातिर हम भारत के साथ मिलकर काम करने के इच्छुक हैं।

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