भले ही रोजाना 8.5 लाख पैसिंजर ही दिल्ली मेट्रो का फायदा उठा पाते हों लेकिन दिल्ली शहर को मेट्रो के आने से परोक्ष रूप से हजारों करोड़ रुपये का फायदा हो रहा है। मेट्रो का दावा है कि अगर ईंधन लागत, वाहनों की तादाद, हादसों, प्रदूषण, सड़क पर आने वाला खर्च और रोड ट्रैफिक जाम में बर्बाद होने वाले वक्त को अगर रकम में बदला जाए तो 2011 तक दिल्ली शहर को मेट्रो के फेज एक की लागत के बराबर का फायदा हो चुका होगा। दिल्ली मेट्रो ने यह दावा केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) की स्टडी रिपोर्ट के आधार पर किया है। इस तरह की पहली स्टडी 2007 में की गई थी जबकि दूसरी स्टडी इस साल की गई है। दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्परेशन के डायरेक्टर (वर्क्स) मंगू सिंह ने बताया कि यह स्टडी इस साल जनवरी से लेकर जुलाई के बीच की गई थी। इस स्टडी के लिए सीआरआरआई के विशेषज्ञ ने 10 हजार ऐसे लोगों से बातचीत की, जो मेट्रो में सफर करते हैं। उसके बाद ही पैसिंजर पैटर्न का अनुमान लगाकर पूरे प्रोजेक्ट और उससे होने वाले फायदे के बारे में वैज्ञानिक तरीके से विश्लेषण किया गया। उसके बाद ही ये नतीजे सामने आए हैं। दिल्ली मेट्रो के अधिकारियों का कहना है कि 2007 में जो स्टडी की गई थी, उसमें कहा गया था कि पहले फेज की लागत 2013 तक वसूल हो जाएगी लेकिन अब यह 2011 में ही हो जाएगी। इसकी वजह यह है कि जब पहली स्टडी हुई थी, तब मेट्रो में सिर्फ पांच लाख पैसिंजर प्रतिदिन सफर करते थे लेकिन दूसरी स्टडी के दौरान यह आंकड़ा बढ़कर 8.5 लाख पैसिंजर प्रतिदिन हो गया है। इस स्टडी में कहा गया है कि जिन लोगों के कार्यालय और घर के बीच या फिर कार्यस्थलों के बीच मेट्रो का विकल्प है, वहां ज्यादातर लोगों ने मेट्रो को ही अपनाया है। 2007 में ऐसे दुपहिया वाहन मालिकों में से महज 32.81 फीसदी लोगों ने ही मेट्रो में सफर शुरू किया था लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 66.3 फीसदी हो गई है। इस अध्ययन के आधार पर सीआरआरआई ने कहा है कि मेट्रो में सफर करने वालों में से 24.8 फीसदी पैसिंजर ऐसे हैं, जिनके पास दोपहिया वाहन हैं जबकि 18.11 फीसदी के पास कार है।
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