Wednesday, July 17, 2013

बच्चे, जवान, महिलाएं और बुजुर्ग सब ट्रेन देखने आए

बनिहाल से काजीगुंड रेलवे स्टेशन की दूरी लगभग 17 किलोमीटर है। दोनों के बीच ट्रेन सवा ग्यारह किलोमीटर लंबी सुरंग से होकर गुजरती है। पहाड़ों को चीर कर बनाई गई इस सुरंग का नाम टी-80 है। इसे बनाने में कितना श्रम और संसाधन लगा होगा, इसका सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है। कश्मीर की उस लंबी सुरंग और हरी-भरी वादियों से गुजरती हुई जब हमारी ट्रेन काजीगुंड स्टेशन पहुंची तो वहां लोगों की भीड़ लगी थी। बच्चे, जवान, महिलाएं और बुजुर्ग सब ट्रेन देखने आए थे। उनकी आंखों में थोड़ा अचरज था, थोड़ी हसरत थी। कश्मीर के पारंपरिक कपड़ों में सजी एक लड़की से पूछा, ट्रेन में बैठोगी? वह उल्लास से लगभग उछलती हुई सी बोली, बारामूला जाएंगे, खाला के घर। फिर जैसे कुछ एहसास हुआ हो, अचानक लजाकर दूर खड़ी अपनी सहेलियों की ओर भाग गई। वह रिजवाना थी, कोई 15-16 साल की कश्मीरन।

मैं सोचने लगा, यह जम्मू-कश्मीर में बिछाई जा रही रेल की पटरियों का कमाल है, वर्ना मेरे जैसे लहीम-शहीम एक बाहरी मर्द के साथ इतनी सी बात करने का साहस भी वह नहीं करती। ट्रेन को देखकर जो चमक उसकी आंखों में आई थी, वह स्टेशन के आसपास मौजूद हर शख्स की आंखों में थी। हमारे जाने के करीब 10 दिन बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश की इस सबसे लंबी और आधुनिक रेल सुरंग को औपचारिक तौर पर आम जनता के लिए खोला। उसी समय श्रीनगर में सेना पर हुए एक आतंकी हमले की वजह से इस ऐतिहासिक घटना की चमक थोड़ी फीकी पड़ गई। पर इतना तय है कि बीती 26 जून को वहां शुरू हुआ रेल लिंक केंद्र सरकार के साथ वहां के अवाम के रिश्तों के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर की किस्मत भी बदलने जा रहा है।

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